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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 93  सांयकाल होने को था और अभी तक देवयानी मधुर मिलन के लिए तैयार होने भी नहीं बैठी थी । अशोक सुन्दरी ने उसे हलकी डांट लगाते हुए कहा "पुत्री, शीघ्र जाओ और अच्छे से तैयार होकर आओ । आज की रात्रि तुम्हारे दाम्पत्य जीवन की प्रथम रात्रि है, इसे अविस्मरणीय बनाओ । आज अपने सौन्दर्य रस से मेरे पुत्र को "गंगा स्नान" कराकर उसे "पवित्र" कर दो पुत्री । अपने नयनों के तीखे बाणों से उसका हृदय बेध कर रख देना । अपनी कमान रूपी भवों से उस पर कस कसकर वार करना । अपनी भुजंग सदृश वेणी से उसे ऐसा जकड़ कर रखना कि वह फिर कभी तुमसे पृथक न हो सके । अधरों के गुलाबों में समेट कर रख लेना उसे और अपनी मोहिनी मुस्कुराहट के जाल में उसे ऐसा फंसाना कि वह फिर कभी वहां से निकल ही न पाये । बाकी अंगों के बारे में तो मैं क्या कहूं ? बस इतना ही कहूंगी कि तुम दोनों के अधरों पर मैं तृप्ति का अमृत देखना चाहती हूं" ।

अशोक सुन्दरी की बातें सुनकर देवयानी और शर्मिष्ठा दोनों लजा गईं । देवयानी के हृदय में तो मिलन का रोमांच था लेकिन शर्मिष्ठा को मिलन कहां नसीब होने वाला था ? वह अपना दुख देवयानी से कह भी नहीं सकती थी । इसलिए वह नजरें झुकाए हुए मुस्कुराती रही और देवयानी को छेड़कर उकसाती रही । आज वह देवयानी की प्रथम मिलन रात्रि में अपनी मिलन रात्रि देखेगी । अब यही तो रह गया है उसकी किस्मत में ।

देवयानी शर्मिष्ठा का हाथ पकड़कर उसे अंत:पुर में बने विशाल जलकुंड के तट पर ले आई । सैरंध्रियों ने जलकुंड को विभिन्न प्रकार के पुष्पों , सुगंधित द्रवों , दुग्ध, दधि , गंगाजल और अन्य द्रव्यों से सुसज्जित कर रखा था । देवयानी ने अपने समस्त वस्त्र उतार दिये और उसने शर्मिष्ठा को भी अपने वस्त्र उतारने को कह दिया । शर्मिष्ठा ठिठक गई । उसे संकोच करते हुए देखकर देवयानी बोली "क्यों, क्या हुआ सखि" ?  "कुछ नहीं" ।  "फिर क्या बात है ? वस्त्र क्यों नहीं उतारे" ?  "बस यूं ही" ?  "मैं समझ गई । यही सोच रही है ना कि एक बार वस्त्र उतारे थे तो उसका क्या परिणाम हुआ ? अब पता नहीं क्या होगा" ?  शर्मिष्ठा कुछ नहीं बोली । तब देवयानी ने स्वयं आगे बढ़कर उसे भी स्वयं की तरह अनावृत कर दिया । शर्मिष्ठा ने लाज के मारे अपने दोनों हाथों से अपने ऊर्ध्व और अधो अंगों को छुपा लिया । देवयानी शर्मिष्ठा का हाथ पकड़कर जल कुंड में छलांग लगाने वाली थी कि एक प्रमुख सैरंध्री ने उन्हें इशारे से रोक लिया ।  "क्षमा करें महारानी ! जल क्रीड़ा करने से पहले कुछ आवश्यक कार्य करने हैं । आप इधर आइए" । प्रमुख सैरंध्री सुदेष्णा ने कहा  "आवश्यक कार्य ? अब क्या आवश्यक कार्य रह गया है सुदेष्णा" ?  "अभी तो बहुत आवश्यक कार्य हैं महारानी । जैसे आपको रोमविहीन करना, उबटन लगाना आदि । इधर आइए,  सर्वप्रथम आपको रोम विहीन करना है" । सुदेष्णा दबी दबी हंसी हंसते हुए बोली ।  "रोम विहीन ? वो भला क्यों ? विवाह के लिए तैयार करते समय तो उस सैरंध्री ने ऐसा नहीं किया था" ? देवयानी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा  "दोनों में अंतर है महारानी जी । विवाह के लिए तैयार करते समय आपके बाह्य सौन्दर्य का ध्यान रखा जाता है महारानी जी । विवाह में आपको संपूर्ण जगत देखता है क्योंकि आप उसमें केन्द्र बिन्दू होती हैं । इसलिए आपके अंतरंग अंगों के सौन्दर्य पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता है । किन्तु आज आपकी मिलन की प्रथम रात्रि है । आज आपके अंग अंग का सौन्दर्य छलकना चाहिए । जब महाराज आपको अनावृत करेंगे तब उनकी आंखें आपके सौन्दर्य को निहारती हुई आश्चर्य से फैल जानी चाहिए । इसलिए आपके संपूर्ण अंगों से रोम रोम का उच्छेदन करना होगा । तभी तो आपका यह सौन्दर्य और निखर कर सामने आयेगा । आपको रोम विहीन करने के पश्चात आपको उबटन लगाया जायेगा । आपके स्वर्णिम तन को और चमकाया जायेगा । उसके पश्चात आपके केशो को आंवला, शिकाकाई, हिना , फेनक आदि के लेप से धोकर सुखाया जायेगा । उसके पश्चात आप जल क्रीड़ा करना" । सुदेष्णा ने रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहा ।

देवयानी को भी यह सुनकर अच्छा लगा कि आज उसके प्रत्येक अंग का श्रंगार होगा । वह भी चाहती थी कि आज उसे ऐसा संवारा जाये कि महाराज उसके सौन्दर्य में निमग्न हो जायें । उन्हें उसके सौन्दर्य के अतिरिक्त और कुछ स्मरण न रहे । देवयानी ने स्वयं को एवं शर्मिष्ठा को सैरंध्रियों को सुपुर्द कर दिया । सैरंध्रियों ने उनके पूरे बदन पर एक विशेष प्रकार का लेप लगाया और उन्हें खुला छोड़ दिया । तब तक वे उनके बालों को धोने लगी । इससे देवयानी को बड़ा सुकून मिल रहा था ।

थोड़ी देर के पश्चात सैरंध्रियों ने एक इशिका (रूई) का गोला लिया और उससे उनके बदन पर चिपके लेप को साफ करने लगीं । देवयानी ने देखा कि इशिका पर उसके हलके हलके रोम भी उखड़कर आ रहे थे । अब दोनों का बदन रोम विहीन हो गया था जो देखने में बहुत आकर्षक लग रहा था । रोमावली हट जाने से तन की कांति और बढ़ जाती है तथा अंग प्रत्यंग स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है । एक सैरंध्री ने उनके अंगों को और अधिक आभामय बनाने के लिए उनके बदन पर "अंगराग" मलना प्रारंभ कर दिया । इस अंगराग में बेसन, आटा, हलदी , चंदन , कालीयक, अगरु, कर्पूर और अन्य सुगंधित द्रव्य मिले हुए थे । इस अंगराग के कारण देवयानी के बदन की कांति सुवर्णमयी हो गई थी । शर्मिष्ष्ठा के साथ भी ऐसा ही किया गया ।

अंगराग लगाने और केश प्रक्षालन के पश्चात दोनों को जल विहार हेतु पंचामृत भरे जल कुंड में उतार दिया गया । दुग्ध और दधि के कारण संपूर्ण जल श्वेत हो रहा था जिसमें नाना प्रकार के पुष्प तैर रहे थे जिनकी सुवास मन को आनंदित कर रही थीं । उनके साथ जल क्रीडा करने के लिए अनेक सैरंध्रियां भी अनावृत होकर उस जल कुंड में कूद पड़ी थीं । सब लोगों ने थोड़ी देर तक जल क्रीड़ा का प्रचुर आनंद लिया । उसके पश्चात वे सब लोग बाहर आ गये । स्वच्छ तौलिए से बदन और केश पोंछने के पश्चात उन दोनों के केशों और प्रत्येक अंग का श्रंगार होने लगा ।

केशों में बादाम, आंवले और चमेली का तेल लगाया गया । धूप, चंदन , अगरू के धुंए से केशों को सुवासित किया गया । उनमें कुंद (मोगरे) के पुष्पों की वेणी लगाई गई और बीच बीच में अनेक पुष्प लगाये गये । पुष्पों का हार , पुष्पों का जूड़ा , पुष्पों के आभूषण यथा बाजूबंद, कंगन, हथफूल, जयमाल, मेखला आदि पहनाये गये । उससे पूर्व उनके बदन पर केसर का लेप किया गया । विशेष कर उरोजों और कुचों पर जिससे उनमें कसावट और अधिक आ जाये तथा कुचाग्रों में अधिक समय तक तनाव बना रहे । नाभि में इत्र का छिड़काव किया गया । केसर के पुष्पों की कंचुकी बनाई गई जो उन्हें पहना दी गई । मंदार और शिरीष के पुष्पों का अधो वस्त्र तैयार किया गया जिसे कमर पर बांध दिया गया । नीले कमल दल के बाजूबंद बनाये गये और गुलाब के पुष्पों के कंगन । भांति भांति के पुष्पों की जयमाल बनाकर उनके गले में डाल दी गई । भवों को संवारा गया और ललाट पर कुमकुम आदि से भवों के किनारे किनारे छोटी छोटी बिंदी बनाई गईं । आंखों में काजल , अधरों पर लाल महावर लगाया गया जिस पर लोध्रचूर्ण छिड़क कर उन्हें उत्तेजक बनाया गया । गालों पर श्वेत चंदन का लेप लगाया गया । चिबुक पर काजल के शलाका से दो दो तिल बनाये गये । शेष अंगों में सोने चांदी हीरे जवाहरात के आभूषण सजाये गये । इस तरह देवयानी और शर्मिष्ठा का श्रंगार किया गया । दोनों जनीं आईने के सामने खड़ी होकर स्वयं ही अपने सौन्दर्य का पान करने लगीं ।

श्री हरि  8.9.23

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6 Comments

Anjali korde

15-Sep-2023 12:16 PM

Fantastic

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Babita patel

15-Sep-2023 10:31 AM

Awesome

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hema mohril

13-Sep-2023 08:33 PM

Awesome

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